Vinayak Damodar Savarkar
28 May
We Miss You Sir
अगर संसार को हिन्दू जाति का आदेश सुनना पड़े, ऐसी स्थिति उपस्थित होने पर, उनका वह आदेश गीता और गौतम बुद्ध के आदेशों से भिन्न नहीं होगा वीर सावरकर
दुसरो का समान करने की शक्ति रखने वालों में ही मैत्री संभव है। वीर सावरकर
महान लक्ष्य के लिए किया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नहीं जाता है।
वीर सावरकर
कष्ट ही तो वह चाक शक्ति है जो इंसान को कसौटी पर परखती है और उसे आगे बढ़ाती है।
वीर सावरकर
वर्तमान परिस्थिति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, इस तथ्य की चिंता किये बिना ही इतिहासलेखक को इतिहास लिखना चाहिए और समय की जानकारी को विशुद्ध और सत्य रूप में ही प्रस्तुत करना चाहिए।
वीर सावरकर
अपने देश की, राष्ट्र की, समाज की स्वतंत्रता- हेतु प्रभु से की गई मूक प्रार्थना भी सबसे बड़ी अहिंसा का द्योतक है।
वीर सावरकर
उन्हें शिवाजी को मनाने का अधिकार है, जो शिवाजी की तरह अपनी मातृभूमि को आजाद कराने के लिए लड़ने के लिए तैयार हैं।
वीर सावरकर
कर्तव्य की निष्ठा संकटों को झेलने में, दुःख उठाने में और जीवनभर संघर्ष करने में ही समाविष्ट है। यश अपयश तो मात्र योगायोग की बातें हैं। वीर सावरकर
अन्याय का जड़ से उन्मूलन कर सत्य धर्म की स्थापना हेतु क्रांति, प्रतिशोध आदि प्रकृतिप्रदत्त साधन ही हैं। अन्याय के परिणामस्वरूप होनेवाली वेदना और उद्दण्डता ही तो इन साधनों का नियन्त्रण करती है।
वीर सावरकर
देश-हित के लिए अन्य त्यागों के साथ जन-प्रियता का त्याग करना सबसे बड़ा और ऊँचा आदर्श है, क्योंकि – “वर जनहित ध्येयं केवल न जनस्तुति” शास्त्रों में उपयुक्त ही कहा गया है।
वीर सावरकर